Munawwar Rana का निधन
आज उर्दू के महशूर शायर मुनव्वर राना का निधन हो गया। जिन्होंने अपने शब्दों से लाखों दिलों पर राज किया । उनका जाना हम सभी के लिए अपूरणीय क्षति है वे हमेशा अपने शब्दों से सरकार के सरोकार से सवाल करते थे ।
वे बहुत दिन से बीमार चल रहे थे पिछले दो साल से डायलेसिस पर थे , लखनऊ के वेदांता होस्पिटल में उन्होंने अंतिम सांस लिया। वे वेंटिलेटर पर थे उनकी स्तिथि गंभीर बनी हुवी थी। डॉंक्टर ने भी उनकी हालत अच्छी नही बताई थी, वे लंबे समय से हॉस्पिटल में थे। कहा ये भी जा रहा है कि उनकी मृत्य हर्ट अटेक से हुवा है। दो दिन पहले भी उनको heart attec आया था
मुनव्वर राना का जन्म उत्तर प्रदेश के रायबरेली में हुवा था बाद में वे लखनऊ चले गए। उनके पिता का नाम अनवर राणा ,माँ आयेशा खातून । उनकी माँ पर लिखी गई रचनाएं सर्वश्रेष्ठ रचनाओं में से एक है-
किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई
मैं घर में सब से छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई ।
ऐ अँधेरे! देख ले मुँह तेरा काला हो गया
माँ ने आँखें खोल दीं घर में उजाला हो गया
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है माँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है
चलती फिरती हुई आँखों से अज़ाँ देखी है
मैंने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है
उनके द्वारा माँ पर लिखी गई रचनाएँ देस विदेश में प्रचलित हुवी, उर्दू जगत की जितने भी पढ़ने , लिखने वाले लोग होंगे शायद हीं मुनव्वर राना के नाम से अनजान होंगे ।
मुनव्वर राना उर्दू शायरी के वो सतंभ शायर है जिनकी रचनाएँ अमर रहेंगी । जब भी माँ की बातें आयगी उनके लिखे गये रचनाएँ चारों तरफ तैरने लगेंगे । महबूब पर लिखने वाले कई शायर मिले लेकिन जब भी माँ पर लेखनी की बात आयगी तो वो पहला नाम मुनव्वर राना का होगा।
एक्ने सख्त तेवर सरकार से आंख मिलाकर सवाल पूछने और अपने बेबाकी के लिए जाने जायेंगे ।उनका शेर है-
बादशाहों को सिखाया है कलंदर होना
और आप आसान समझते हैं मुनव्वर होना ।
एक आँसू भी हुकुमत के लिए खतरा है
तुमने देखा नही है आंखों का समंदर होना
उन्हें उर्दू में उत्कृष्ट योगदान के लिए उनके किताब शाहदबा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से 2014 में सम्मानित किया गया । लेकिन सरकार से नाराजगी के बाद उन्होंने 2015 में पुरस्कार वापिस कर दिया था |
वे एक सदाबहार शायर थे उन्होंने हर तरह की शायरी लिखी रोमांटिक शायरियाँ भी लिखी , कुछ संजीदा शायरी भी लिखी उनके कुछ चुनिंदा शेर
तुम्हारी आँखों की तौहीन है ज़रा सोचो
तुम्हारा चाहने वाला शराब पीता है
अब जुदाई के सफ़र को मिरे आसान करो
तुम मुझे ख़्वाब में आ कर न परेशान करो
सो जाते हैं फ़ुटपाथ पे अख़बार बिछा कर
मज़दूर कभी नींद की गोली नहीं खाते
निकलने ही नहीं देती हैं अश्कों को मिरी आँखें
कि ये बच्चे हमेशा माँ की निगरानी में रहते हैं
जन्म- 26 नवंबर 1952 उत्तर प्रदेश रायबरेली
मृत्यु – 14 january 2024
अभिभावक- आयेशा खातुन , अनवर राणा
पुरस्कार – साहित्य अकादमी पुरस्कार (2014)
पुरष्कार वापसी( 2015)
